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चुनाव आयोग ने अंततः गुजरात में चुनावों की घोषणा कर दी. गुजरात में चुनावी घमासान पहले ही शुरू हो चुका था. एक तरफ बीजेपी अपने वर्षों पुराने दुर्ग को बचाने में जी जान से जुटी है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस भाजपा के अभेद किले में सेंध लगाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. गुजरात का घमासान चुनाव के नजदीक आते-आते भयंकर रूप ले लेगा.
कांग्रेस ने पहले “विकास पागल हो गया है” के नाम से एक कैम्पेन चलाया. फिर गुजरात में आरक्षण आंदोलन से निकले तीन युवा नेताओं को अपने पाले में खींचकर एक बड़ी चाल चल दी है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी लगातार गुजरात के दौरे पर हैं. कई मंदिरों में राहुल गाँधी जाकर देश को नया सन्देश देना चाहते हैं. २०१४ की हार की समीक्षा के दौरान यह बात निकलकर सामने आयी थी कि कांग्रेस की अत्यधिक तुष्टिकरण की नीति की वजह से हिन्दू वोट कांग्रेस से काफी हद तक छिटक गये थे.
गुजरात बिलकुल सही जगह है इस तरह की नयी रणनीति को परखने के लिये. गुजरात हिन्दू हृदय सम्राट कहे जाने वाले हमारे प्रधानमंत्री का गृहराज्य है. यहीं से नरेंद्र मोदी जी ने अपने विकास कार्यों और हिंदुत्व समर्थक नीति से पूरे देश के दिल में अपन जगह बनायी है.
कांग्रेस के पास गुजरात राज्य में कोई भी वोट जुटाऊ चेहरा नहीं है. शंकर सिंह बघेला पहले ही कांग्रेस से अलग हो चुके हैं. शक्ित सिंह गोहिल अथवा भरत सिंह अपने दम पर गुजरात में कांग्रेस को नहीं जीता सकते हैं. कांग्रेस का संगठन पहले ही बिखरा हुआ है. इसके उलट बीजेपी का संगठन गुजरात में काफी मजबूत स्थिति में है.
राज्य में कोई वोट जुटाऊ चेहरा ना होने से कांग्रेस अब गाँधी परिवार के करिश्मे और तीन जातिवादी नेताओं के गठजोड़ पर पूर्णतया आश्रित है. कांग्रेस पाटीदार, अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों को मिलाकर एक नया जातीय समीकरण खड़ा करना चाहती है. मुस्लिम और आदिवासी वोट भी ठीक संख्या में कांग्रेस को मिल जाते हैं.
अभी तक गुजरात चुनावों में विकास और हिंदुत्व का ही मुद्दा रहता था. जातिवादी राजनीति को अभी तक गुजरात में सफलता नहीं मिली है. कांग्रेस गुजरात चुनावों को लेकर हमेशा अत्यधिक चिंतित रहती है, क्योंकि यहां के चुनावों की राष्ट्रीय राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है.
कांग्रेस के प्रथम परिवार को हमेशा इसी राज्य के नेताओं से चुनौती मिलती रही है. सरदार वल्लभ भाई पटेल, मोरार जी देसाई और अब नरेंद्र मोदी जी ने गाँधी नेहरू परिवार के करिश्मे को बेअसर कर दिया. हार्दिक पटेल ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन खड़ा करके गुजरात में जातिवादी राजनीति का आरम्भ कर दिया था. पाटीदार बड़ी संख्या में हार्दिक के समर्थन में आये थे.
खासकर युवाओं के बीच हार्दिक की लोकप्रियता काफी बढ़ी थी. हार्दिक के आंदोलन की वजह से भाजपा को अपनी मुख्यमंत्री आनंदी बेन को हटाकर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था. हार्दिक के एक सहयोगी ने भाजपा पर एक करोड़ रुपए देकर चुनावों में खरीद फरोख्त करने का आरोप लगाया है. हार्दिक भी स्वयं उस समय विवादों में आ गये जब उनका एक वीडियो मीडिया में आ गया. जिसमे वह राहुल गाँधी से मिलते हुए तथा दो भारी बैग लेकर जाते दिख रहे हैं.
इससे पहले हार्दिक ने अरविन्द केजरीवाल को भी अपना समर्थन दिया था. लेकिन पैसा कांड और कुछ निकट सहयोगियों के साथ छोड़ने से हार्दिक की स्थिति कमजोर पड़ गयी है. पाटीदारों में इसका गलत संकेत गया है और उन्हें लग रहा है कि हार्दिक ने उनके साथ धोखा किया है.
अल्पेश ठाकोर ने एक जनसभा में राहुल गाँधी के सामने कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की. अल्पेश हार्दिक के विरोधी हैं और पाटीदार आरक्षण का विरोध कर नेता बने हैं. यह पहले भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर हार चुके हैं. इनके पिता पुराने कांग्रेसी हैं और अभी भी कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण पद पर हैं.
इस तिकड़ी के तीसरे नेता जिग्नेश मेवाणी हैं. यह दलितों के युवा नेता हैं. जिग्नेश भाजपा के विकास मॉडल को खोखला बता रहे हैं. भाजपा के कट्टर विरोधी हैं और आरक्षण के मौजूदा स्वरूप में किसी बदलाव भी के विरोधी हैं. जिग्नेश अन्य दो नेताओं से अलग व्यक्तित्व के धनी हैं. आज भी यह दोपहिया वाहन से ही चलते हैं.
हार्दिक फाॅर्चूनर और अल्पेश जगुवार से चलते हैं. ऊना कांड के बाद इन्होंने घोषणा की कि “अब दलित गंदा काम नहीं करेंगे” फिर इसके बाद इन्होंने गाँधी जी की “दांडी यात्रा” जैसी ही एक “दलित अस्मिता यात्रा” का नेतृत्व किया. दलितों को गंदा काम नहीं करने की शपथ दिलवाई गयी. राजनीतिक रूप से जिग्नेश आम आदमी पार्टी से जुड़े हुए हैं. वह आप के प्रवक्ता भी हैं. अगर अरविन्द केजरीवाल गुजरात में चुनाव लड़ने का मन बनाते हैं, तो इस बात की पूरी उम्मीद है कि जिग्नेश के नेतृत्व में ही यह चुनाव लड़ा जायेगा.
दूसरी तरफ भाजपा के लिए गुजरात अजेय किला है जिसे भेदना किसी भी अन्य पार्टी के लिए नामुनकिन है. प्रधानमन्त्री स्वयं वहां सबसे बड़े चुनावी नायक हैं. पिछले तीन बार की तरह इस बार भी वोट उनके नाम पर ही गिरेंगे. प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने कार्यकाल से लोगों के दिलो में एक स्थायी जगह बनायी है. भाजपा का संगठनात्मक ढांचा इतना मजबूत है कि गुजरात की १/४ जनसँख्या भाजपा सदस्य है.
तीन युवा नेताओं ने जरूर सरकार के लिए कुछ समय मुसीबत खड़ी की थी, परन्तु अब बीजेपी सरकार उससे उभरती नजर आ रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने एक के बाद एक कई विकास योजनाओं की शुरुआत कर माहौल बदल दिया है. लगातार कई वर्षों से सत्ता में रहने के कारण थोड़ा बाहर जो सत्ता विरोधी रुझान था, वो अब गायब हो गया है.
अहमद पटेल से जुड़े नए आतंकवादी कनेक्शन वाली घटना ने कांग्रेस को पूर्णतया बैकफुट पर ला दिया है. कांग्रेस के पास गुजरात में जो अपने जनाधार वाले नेता हैं, उनमे से कुछ पहले ही भाजपा के पाले में आ चुके हैं. कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत “विकास पागल हो गया है” जैसे जुमले से की थी.
यह कांग्रेस की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल साबित होगी. जिस प्रदेश में विकास करके नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमन्त्री बन गये. उस राज्य में विकास का मजाक बनाने से कांग्रेस की छवि विकास विरोधी हो गयी है. यह जुमला “खून के सौदागर” वाले जुमले जैसा ही भयानक परिणाम कांग्रेस को दे सकती है. कांग्रेस ने इस बात को समझते हुए ही अब अपना ध्यान पूर्णतया जातिवादी राजनीति और जातिवादी नेताओं के इर्द-गिर्द ही केंद्रित कर दिया है.
पिछले नगर निकायों के चुनावों में भाजपा के १०० मुस्लिम कैंडिडेट भी जीते थे. इस बार भाजपा को कुछ मुस्लिम वोट मिलने की भी संभावना है. अमित शाह जैसे कुशल रणनीतिकार, मजबूत संगठन और विपक्ष में किसी भरोसेमंद चहरे की कमी से भाजपा के लिए यह चुनाव भी कठिन नहीं होने जा रहा है. अब तक के सभी एग्जिट पोल पहले ही भाजपा को विजेता घोषित कर चुके हैं. उम्मीद है भाजपा पिछले चुनाव से भी ज्यादा सीट इस बार जीतेगी.
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