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IAS kinjal Singh

ragehulk
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एक ऐसी जाबाज़ आईएएस अधिकारी की जीवनगाथा ले कर आया हूँ जिसके पिता की हत्या उस समय कर दी गयी थी जब वह केवल ६ महीने की थी.जिसने अपनी माता के न्यायसंघर्ष में पूर्ण रूप से साथ दिया तथा अपनी छोटी बहन को भी पढ़ा कर आईएएस अधिकारी बनाया.

आईएएस किंजल सिंह की ये जीवनी है.जिनसे उनका बचपन छीन गया.बच्चो के खेलने की उम्र में ये बलिया से दिल्ली तक अपनी माँ के साथ अपने पिता के हत्यारो को सजा दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का चक्कर काटती थी.इनकी माँ स्व विभा सिंह बनारस कोषालय में नौकरी करती थी जिनकी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा मुक़दमा लड़ने में ही चला जाता था.इनका सपना था कि इनकी बेटी आईएएस अधिकारी बने.इनकी बेटियों ने यह सपना पूरा भी किया.

किंजल सिंह के स्व. पिता के पी सिंह एक पुलिस अधिकारी थे जिनकी हत्या उनके ही सहयोगी पुलिसवालो ने कर दी थी.इनके पिता भी आईएएस बनाना चाहते थे.हत्या होने के कुछ महीनो बाद आये आईएएस मैन्स के रिजल्ट में वो पास थे.पुलिस की झूठी कहानी के अनुसार डीएसपी सिंह डकैतों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए है लेकिन इनकी माता को विश्वास नहीं हुवा.उनका मानना था की डीएसपी सिंह की हत्या साथी पुलिस वालो ने की है.विभा सिंह जी का अंदेशा सही साबित हुवा जब सीबीआई जाँच में एक जूनियर अधिकारी आर.बी.सरोज द्वारा हत्या की बात निकल कर सामने आयी.इस हत्याकांड में १२ निर्दोष ग्रामीणों की हत्या भी पुलिस वालो ने कर दी थी.३० साल मुकदमे के बाद कुल १९ में से तीन अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई गयी.

किंजल सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई दिल्ली के श्रीराम कॉलेज से पूरी की.पहले सेमेस्टर में इनको अपनी माँ की बीमारी का पता लगा.इनकी माँ को अंतिम चरण का कैंसर हो चूका था.कीमोथेरपी के कई चरणों से गुजरने क बाद विभा सिंह का शरीर बिलकुल जवाब दे गया था.लेकिन बेटियों की चिंता के कारण वो लगातार अपने शरीर से लड़ रही थी.फिर एक दिन जब डाक्टर के निर्देशानुसार किंजल अपनी माँ से मिली और अपनी माँ को इन्होने वचन दिया की दोनों बहन अपने पिता का सपना पूरा करेंगी तथा अपनी जिम्मेदारी खुद उठाएंगी.तब उनकी दृढ़निश्चयी माता के चहरे पर सुकून आया और वो कोमा में चली गयी.कोमा में जाने के कुछ दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी.

किंजल का संघर्ष अब अत्यंत दुखद स्थिति में था.लक्ष्य अत्यंत कठिन था.किंजल ने हार नहीं मानी और माँ की मृत्यु के २ दिन बाद ही इन्हे दिल्ली लौटना पड़ा.उसी साल किंजल सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया.उसके बाद किंजल ने अपनी छोटी बहन प्रांजल को भी दिल्ली बुला लिया.दोनों बहने मुखर्जी नगर में किराए के फ्लैट में अपने माता पिता का सपना पूरा करने में जुट गयी.अब इनके जीवन का एक ही ध्येय था किसी भी तरह आईएएस बनना.

किंजल सिंह ने अपने इंटरव्यूज में बताया था कि कैसे जब छुट्टिया होती थी तो वो और प्रांजल ही हॉस्टल में रह जाती थी. उन्होंने अकेलेपन को अपनी कमजोरी नहीं अपनी शक्ति बनाया.प्रांजल और किंजल ही एक दूसरे का सहारा थी.इन्ही अकेले दिनों ने उनमे १८ घंटे पढ़ने की काबिलियत दी.जब कभी इनका मन विचलित होता तो ये अपने माता-पिता और उनके सपने को याद कर फिर दुगुने उत्साह के साथ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने लगती.दोनों लड़कियों ने जीवन भर अपने माँ का संघर्ष देखा था.इसलिए अब ये किसी भी तरह के संघर्ष और मुसीबत का सामना करने को तैयार थी.इन्हे अपने सफलता के दिन उनकी बहुत याद आयी लेकिन ख़ुशी भी थी कि आखिर दोनों अपने अपने शहीद पिता और माता के सपने को पूरा कर दिखाया है.

आखिरकार २००८ में वो घड़ी आ गयी जब किंजल सिंह का चयन आईएएस के लिए हो गया और छोटी बहन प्रांजल का भी चयन IRS के लिए चुन ली गयी.किंजल को पुरे भारत में २५ वां रैंक तथा प्रांजल को २५२वां मिला.दोनों का कठिन परिश्रम अब जाकर सफलता में परिणित हुवा.लेकिन कैसी किस्मत बहनो की? उस सफलता को बांटने के लिए न माता ना पिता.उन अकेली बहनो ने कैसे उस सफलता को आत्मसात किया होगा.कितनी ढृढ़ता दिखाई दोनों ने.

आईएएस किंजल सिंह की कहानी उन लाखो युवाओ के लिए प्रेरणाश्रोत है.जो अभाव में जीये है जिनका पूरा जीवन संघर्षो में ही बिता है.उन युवावो को कभी हार नहीं माननी चाहिए और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सतत परिश्रम करते रहना चाहिए.जब भारत की सबसे कठिन मानी जाने वाली परीक्षा दो अनाथ बहने एक दूसरे के सहारे पास कर सकती है तो कोई भी परिश्रमी छात्र भी इस परीक्षा में सफल हो सकता है.परिश्रम करने वालो की कभी हार नहीं होती.और दुनिया में कोई भी लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे मनुष्यअपने परिश्रम से प्राप्त ना कर सके.

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