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पहले कांग्रेस, फिर मुलायम सिंह यादव और अब लालू प्रसाद यादव ने अपनी लुटिया पुत्र मोह में डुबो दी. जब लालू प्रसाद को सत्ता की सबसे ज्यादा जरूरत थी, ठीक तभी सत्ता उनके हाथ से निकल गयी.लालू परिवार के विभिन्न ठिकानों पर लगातार छापे पड़ रहे हैं. लालू खुद भी बार-बार कोर्ट के चक्कर काट रहे है. बावजूद इसके लालू जी ने अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए बिहार की सत्ता गवां दी.
देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस ने भी अपनी राजनीतिक जमीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के पुत्र मोह की वजह से ही खो दी है. कांग्रेस के इतिहास में इतनी कम लोकसभा सीट कभी नहीं आयी. तब भी नहीं जब इंदिरा गाँधी ने देश पर आपातकाल लगाकर जनता से सारे लोकतान्त्रिक अधिकार छीन लिए थे.
राहुल गाँधी की मानसिक स्थित एक बच्चे से ज्यादा नहीं है. उनको जितना पढ़ाया जाता है, वे उतना ही बोल पाते हैं और उतना ही समझ पाते हैं. उनसे अगर उससे बाहर का कुछ पूछ लें, तो भी वे रटाया गया जवाब ही देते हैं. उनके नेतृत्व के खिलाफ कई पुराने कांग्रेसियो ने विद्रोह करके कांग्रेस छोड़ दिया. राहुल गाँधी जहां भी चुनाव प्रचार में गए हैं, कांग्रेस को वहां हार का ही सामना करना पड़ा है. राहुल गांधी जब भी कोई बयान देते हैं कांग्रेस को उसकी सफाई देने में ही कई और बयान देने पड़ते हैं. अगले लोकसभा के चुनाव में इस बात की पूरी संभावना है कि गाँधी परिवार का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी में राहुल गाँधी अपना चुनाव हार जायें.
सोनिया गाँधी इस बात को बखूबी समझती हैं, लेकिन पुत्रमोह के कारण पार्टी की भलाई के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही हैं. राहुल गाँधी कांग्रेस पार्टी पर एक बोझ की तरह हो गए हैं. कई प्रमुख नेताओं ने इस बारे में सार्वजनिक रूप से बयान भी दिए हैं, जिसमें जयराम रमेश और मणिशंकर अय्यर प्रमुख हैं. राहुल गाँधी को अभी तक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया गया है, जबकि इसकी चर्चा कई बार हुई है. इसका प्रमुख कारण राहुल गाँधी कि अयोग्यता ही है. राहुल गाँधी और उनके सलाहकार सरकार का विरोध सही ढंग से नहीं कर पा रहे, ना ही जनता का विश्वास हासिल कर पा रहे हैं.
अगले चुनावों तक शायद प्रियंका गाँधी भी केंद्रीय भूमिका में आ जायें और कहीं से उनको भी चुनाव लड़वाया जा सकता है. तब कांग्रेस कि स्थिति में थोड़ा सुधार हो सकता है. राबर्ट वाड्रा के चलते प्रियंका को भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन कांग्रेस के पास और कोई विकल्प भी नहीं है. यह भी हो सकता है कि तब तक राहुल गाँधी न रहें, जिससे प्रियंका की राह निष्कंटक हो जाए.
कद्दावर नेता मुलायम सिंह यादव भी अपने पुत्र मोह में बर्बादी की कगार पर पहुँच गए हैं. जिस बेटे को उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया, उसी बेटे ने उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया.जिस समाजवादी पार्टी को इन्होंने अपने खून-पसीने से खड़ा किया, उस पर बेटे ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर लिया और इनकी हैसियत शून्य हो गयी है.
अभी हाल के विधानसभा चुनावों में बड़ी मुश्किल से अपने कुछ लोगों को सपा का टिकट दिलवा पाए थे और उन सभी लोगों को हराने में अखिलेश समर्थकों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. ये इतने नाराज हुए कि कहीं भी चुनाव प्रचार में नहीं गए, जिसका नतीजा यह हुआ कि ४९ सीट के साथ सपा का जनाजा निकल गया. आज हालत यह है कि किसी भी बैठक में बाप-बेटे एक साथ नहीं जा रहे.
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि भी पुत्र मोह के चलते आज दयनीय स्थिति में हैं. उनके पुत्रों एमके अलागिरी और एमके स्टालिन के बीच भी उनके राजनीतिक उत्तराधिकार की जंग चली, जिसमें करुणानिधि ने एमके स्टालिन को चुना. एमके स्टालिन के नेतृत्व में तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में DMK की शर्मनाक हार हुई थी और जयललिता दोबारा सत्ता में आयी थी.
लालू प्रसाद यादव पुत्र मोह में सबसे आगे निकले. इन्होंने अपनी बनी बनायी सरकार गिरा दी. यह सत्ता सुख इन्हें १० साल विपक्ष में बैठने और जेल का एक चक्कर लगाने के बाद मिला था. इन्होंने अपने पुत्रों का भविष्य उज्ज्वल बनाने के बदले अंधकार में डाल दिया. इस समय जब लालू का लगभग पूरा कुनबा ही भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहा है और उसको सत्ता बल की भारी जरूरत थी, ठीक उसी वक़्त लालू प्रसाद यादव ने पुत्र मोह में अँधा होकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. लालू यादव को सरकार गिराने की कोई जरूरत ही नहीं थी, वे चाहते तो आराम से सरकार बचाई जा सकती थी. लालू अपने दूसरे पुत्र को सरकार में उपमुख्यमंत्री बनवा सकते थे और अपने किसी विश्वस्त को भी सरकार में शामिल कराकर आराम से सरकार चला सकते थे. मगर लालू ने बेवकूफी भरा कदम उठाया और अपने साथ-साथ पूरे विपक्ष के पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार दी.
शास्त्रों में लिखा है कि कलयुग में धनमोह और पुत्र मोह सब पर भारी रहेगा. ऐसा होता हुआ हम अपने सार्वजानिक जीवन में देख भी पा रहे हैं. जो नेता जीवनभर अपनी बुद्धिमत्ता के लिए जाने गए और जिन्होंने अपनी बुद्धि से ही विरोधियों को हर चुनाव में पानी पिला दिया, उनकी बुढ़ापे में पुत्र मोह के कारण दुर्दशा हो गयी है. ये सभी अपनी पार्टी के सुप्रीमो बोले जाते रहे हैं. इन्होंने अपनी पार्टी, देश और प्रदेश पर एक छत्र राज किया है. अपनी पार्टी के बाहर और भीतर सभी विरोधियों को परास्त किया है. लालू, मुलायम और करूणानिधि ने तो स्वयं इतनी बड़ी पार्टी की भी स्थापना की है, लेकिन अपने पुत्रों के सामने सबकी बुद्धि परास्त हो गयी है.
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