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काम बोल गया। साल २०१२ में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का नेतृत्व एक अतिशिक्षित युवा अखिलेश यादव ने किया। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट और ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री हासिल करने वाले इस युवा में उत्तर प्रदेश की जनता को एक उम्मीद की किरण नजर आयी, जो मायावती के पांच वर्षों के कार्यकाल से त्रष्त थी। मायावती ने अपने १०० मंत्री और विधायक पार्टी से करप्शन के आरोप में निकाल दिए थे। जनता को यह उम्मीद थी कि ये युवा जरूर उन्हें एक स्वच्छ और पारदर्शी शासन देगा। उत्तर प्रदेश की जनता ने बहुमत के साथ तब तक के सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री चुना, लेकिन समय के साथ जनता की उम्मीदें धूल में मिल गईं।
अखिलेश यादव के शासन काल में गुंडाराज के साथ भ्रष्टाचार का भी राज चला। जो भी योजनाएं इनके शासन काल की स्वर्णिम थीं, उन सभी में भ्रष्टाचार का दाग लगा। अखिलेश ने अपना चुनावी नारा बनाया था ‘काम बोल रहा है’ और जनता ने इनका पूरा काम बोलवा दिया। अखिलेश इस बार के चुनावों के बाद बड़े नाराज हुए कि हमारी सरकार ने इतना काम किया था और जनता ने उन्हें हरा दिया, लेकिन अब उन्हें भी पता चल रहा होगा कि काम कैसे हुआ था।
नयी सरकार बनते ही इनके कामों की जांच शुरू हुई। रोज नए खुलासे हो रहे हैं। गोमती रिवर फ्रंट में पहले ही कई इंजीनियर और ठेकेदारों पर प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। इस मामले में 90 प्रतिशत से ज्यादा पैसे का भुगतान होने के बावजूद 50 फीसदी भी काम पूरा नहीं हुआ, जबकि यह काम अखिलेश के सामने ही होता रहा है। ठीक इसी तरह आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का काम भी बहुप्रचारित किया गया। जनता को बताया गया कि ये इतना अच्छा बना है कि इस पर हवाई जहाज भी उतर सकते हैं।
इस पूरे रोड का निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही इसका उद्घाटन अखिलेश ने चुनावों के चक्कर में कर दिया था, लेकिन उद्घाटन के दिन ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी, जिसमे सहगल बुरी तरह घायल हो गए थे। इस घटना के बाद इस रोड के डिज़ाइन पर कई सवाल उठे। ठीक इसी तरह लखनऊ में मेट्रो का भी उद्घाटन आनन-फानन में कर दिया गया था।
इसी हफ्ते पहली ही बरसात में लखनऊ मेट्रो के ट्रांसपोर्ट नगर स्टेशन कि फर्श धंस गई. दुर्गापुरी स्टेशन की दीवार भी गिर गई। ट्रांसपोर्ट नगर स्टेशन पर ही यात्रियों के आवागमन के लिए बना रैंप भी जमीन में धंस गया। मेट्रो के निर्माण में किस तरह की लूट की गई है, यह उपरोक्त उदाहरणों से ही स्पष्ट है। अखिलेश सरकार में भ्रष्टाचार के कुछ और उदाहरण सामने आ रहे हैं जैसे कि जनेश्वर मिश्र पार्क में सांप पकड़ने के लिए ९ करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए. सपेरे इटावा से बुलाये गए थे। नोएडा में एक नए फ्लाईओवर का उद्घाटन अभी कुछ दिनों पहले ही हुआ है। इस फ्लाईओवर की गिट्टी कई जगह पर उखड चुकी है। नोएडा अथॉरिटी के ही एक अतिविवादस्पद इंजीनियर यादव सिंह को बचाने के लिए अखिलेश सरकार सुप्रीम कोर्ट तक गई थी। यादव सिंह पर अवैध रूप से १००० करोड़ की संपत्ति बनाने का आरोप है।
नोएडा में DND टोल ब्रिज पर अवैध रूप से टोल की वसूली हो रही थी। अखिलेश सरकार में कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इसकी शिकायत अखिलेश से की, लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। बाद में कोर्ट के आदेश पर यह अवैध वसूली बंद हुई। गाज़ीपुर जिले के सैदपुर में गंगा के ऊपर एक पुल का निर्माण हुआ और उसको उद्घाटन के एक हफ्ते के भीतर ही रिपेयर करने के लिए बंद कर दिया गया तथा भारी वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी गई। अखिलेश सरकार में हुई लगभग सभी नियुक्तियां विवादों में रही हैं और कोर्ट में विचाराधीन हैं। उत्तर प्रदेश में पहली बार ऐसा जंगलराज आया था, जिसमे गुंडाराज के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी अपने चरम पर पहुंच गया था। जब जनता मुज़फ् रनगर में दंगों की आंच में झुलस रही थी, तब अखिलेश सरकार सैफई के शामियाने में आनंदमग्न थी। जनता ने २०१७ के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव और अन्य राजनेताओं को एक न भुलाने वाला सबक दिया है। जैसे-जैसे सभी मामलों की जांच आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे ही अखिलेश सरकार के कारनामे और बोलेंगे।
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