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बाहुबली २: अद्भुत..अकल्पनीय …शानदार

ragehulk
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ए राजामौली की बाहुबली फिल्म का दूसरा भाग के बारे में उपरोक्त शब्द भी कम है.इस एक फिल्म ने बॉलीवुड को हॉलीवुड फिल्मो के समकक्ष ला कर खड़ा कर दिया है.इस पुरे फिल्म में कैमरे का ऐसा जादू दिखाया गया है की दर्शक एक सेकंड के लिए भी अपनी पलके नहीं झपका सकता है.इस फिल्म में वो सब कुछ है जिसकी कमी पिछले कुछ वर्षो से बॉलीवुड की फिल्मो में दिख रहा था.एक बेहतरीन कहानी, बहुत सुन्दर सिनेमेटोग्राफी (जिसके लिए कभी स्व. यश चोपड़ा जी प्रसिद्द रहे है),कर्णप्रिय संगीत,पूर्ण नायक की छवि तथा बाकी कलाकारों की भूमिका से भी न्याय.

सबसे ज्यादा जनता को पिछले भाग में अधूरे छूटे एक सवाल(कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?) के जवाब मिलने का इंतजार इस भाग में था और लोगो को जवाब मिला भी.इस फिल्म का बजट,काल्पनिक दृश्य,कहानी सब अद्भुत और अकल्पनीय है.इस फिल्म से पहले बॉलीवुड में इतिहास पर आधारित फिल्मो का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है.केवल जोधा अकबर और बाजीराव मस्तानी ही बॉक्स ऑफिस पर कुछ कमाल दिखा पायी थी.इस स्थिति में इतनी बड़े बजट की फिल्म एक फ्लॉप टॉपिक पर बनाना अद्भुत ही है.इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए है.१००० करोड़ से ज्यादा की कुल कमाई, ३९५ करोड़ की हिंदी वर्जन की कमाई,अपने आप में एक नया रिकॉर्ड है.

अब आते है इस फिल्म की स्टोरी और कलाकारों के अभिनय पर.शुरुवात हम फिल्म की कहानी से करते है.फिल्म की कहानी इतनी सशक्त और विस्तृत है कि दो भागो में बनी ये फिल्म दर्शको को पूरे समय तक बांधे रहती है.सभी कलाकारों की भूमिका से पूर्ण न्याय किया गया सभी को अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाने का पूर्ण अवसर दिया गया है और सभी कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से इस फिल्म को और भी शानदार बना दिया है.संस्कृत के शब्दों का इतना सहज उपयोग अब से पहले किसी भी बॉलीवुड की फिल्म में नहीं देखा गया है,टॉलीवुड की फिल्मो में बहुत आम है.

अब हम बात फिल्म के किरदारों से करते है और शुरुवात महानायक बाहुबली का किरदार निभाने वाले प्रभाष से करते है.प्रभाष की भूमिका ही दोनों फिल्मो का केंद्र बिंदु है.पहले अमरेंद्र बाहुबली फिर महेंद्र बाहुबली की भूमिका बड़े जबरदस्त रूप से प्रभाष ने निभाई है. अमरेंद्र बाहुबली के मुकाबले महेंद्र बाहुबली का किरदार थोड़ा कमजोर है.लेकिन ये शायद फिल्म को २ भाग में ही समेटने के चक्कर में हो गया है.अमरेंद्र बाहुबली का कैरक्टर एक मध्यकालीन पूर्ण पुरुष और सम्राट के रूप में है और परदे पर इसको प्रभाष ने बिलकुल जीवंत कर दिया है.बाहुबली की भुजाओ में असीमित ताक़त और दिल में असीम प्यार है.वो युद्ध में एक पूर्ण योद्धा और शांति काल में प्रजापालक है वो अपनी स्त्री के मान सम्मान की रक्षा के लिए शासन ठुकराने वाला वचननिष्ठ भी है और माँ का आज्ञाकारी पुत्र भी है. युद्ध के अतिरिक्त जब नायिका उसके कंधो से होकर नाव पर बैठती है तो उसका पूर्ण पुरुषत्व प्रदर्शित होता है.

इस फिल्म की नायिका देवसेना का कैरेक्टर भी अद्भुत है.फिल्म में जो देवसेना की एंट्री दिखाई वो बिलकुल ही अचंभित कर देना वाली है.देवसेना के कैरेक्टर में अनुष्का शेट्टी अतिसुन्दर लगी है.तलवार की धनी,आत्मसम्मान से भरी हुई पूर्ण क्षत्राणी की भूमिका को अनुष्का शेट्टी ने जीवंत कर दिया है.अनुष्का ने एक्शन सीन इतनी सहजता से किये है जैसे उन्होंने वर्षो से इसकी ट्रेनिंग ली हो.नायक के कंधो से होकर नाव में बैठने वाला दृश्य,इनकी भूमिका को पूर्ण रूप देता है.पति की राजसी षडयंत्रो में फंस कर हत्या होने के बाद वर्षो तक उनके हत्यारे की कैद में रहा कर अपने पुत्र का वर्षो से इंतजार करना और अपने दुश्मन की चिता के लिए लकडिया इकठ्ठा करने का दृश्य भी रोमांच भर देता है.

इस फिल्म की दूसरी महिला कैरेक्टर शिवगामी देवी(राम्या कृष्णनन) की भूमिका भी अत्यंत सशक्त है और उनका एक डायलॉग “मेरा वचन ही है मेरा शासन” ने दर्शको के दिलो में जगह बनायी है. प्रथम भाग के बाद दूसरे भाग में भी इस कैरेक्टर ने पूरी फिल्म को प्रभावित किया है और इस कैरेक्टर की सबसे बड़ी खासियत यह रही है कि यह नायिका और खलनायिका दोनों ही रूपों में है.यह षड्यंत्र का शिकार हो कर पुत्रमोह में अपने भतीजे कि हत्या का आदेश भी देती है लेकिन षड्यंत्र का पता लगने पर अपने भतीजे के पुत्र की प्राणरक्षा के लिए अपने प्राण भी त्याग देती है.

कट्टप्पा(सत्यराज) निःशंदेह पूरे फिल्म की जान है.वह एक ऐसा योद्धा है जो राजसिंहासन को पूर्ण समर्पित,अत्यंत स्वामिभक्त और अपने वचन का पक्का है.अपनी स्वामिभक्ति के चलते ही राजाज्ञा मानकर उसे बाहुबली की ह्त्या करनी पड़ती है.बाहुबली कट्टप्पा को अपना मांमां मानता था और उसे पूरा बिश्वास रहता है की जब तक कट्टपा उसके साथ है वो मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा.बाहुबली के पुत्र को वो दादा का प्यार देने वाला था.फिल्म के एक सीन में जब बाहुबली चंदा और चकोर को दिखा कर कट्टपा को मोहब्बत क्या होती समझाने की कोशिस करता है तो कट्टप्पा का मोहब्बत समझने का अंदाज आज के ८०% युवको जैसा ही है. कटप्पा द्वारा बाहुबली की हत्या वाले दृश्य में तो पूरे सिनेमा हॉल में सन्नाटा छा जाता है कई भावुक दर्शको की आँखों में आंसू छलक उठते है.लेकिन अंत में कट्टपा अपने पापो का प्रायश्चित करते हुवे महेंद्र बाहुबली को वापस सिंहासन दिलाने में पूरी मदद करता है.

बाकि फिल्म के दोनों खलनायक यानि शिवगामी देवी के पति बीजला देवा (नासर) और पुत्र भल्लालदेवा (राणा दग्गुबूती) ने अपने षडयंत्रो से फिल्म में जान डाल दी है.भल्लाल देवा का अपने भाई से ईर्ष्या,उस समय के स्वाभाविक मानव स्वाभाव को दर्शाता है.भल्लालदेवा भी अपने चचेरे भाई की तरह ही महाबली है लेकिन उसने षडयंत्रो की सहायता से अपने भाई की हत्या कर उसके राज्य पर अवैध कब्ज़ा कर लिया तथा उसकी पत्नी के साथ परम दुर्व्यवहार करते हुवे उसे अपने महल के सामने जंजीरो से जकड़वा कर रखता है.ये अन्याय की परिकाष्ठा थी. जिसका बदला महेंद्र बाहुबली लेता है और भल्लालदेवा के पुत्र का सर काट के भल्लालदेवा को भेजता है.

कुमारवर्मा(पेनमत्सा सुब्बाराजू) भी एक छोटा लेकिन प्रभावी  किरदार है जो भल्लादेव के षड्यंत्र का शिकार हो कर अपनी जान गँवा बैठता है और बाहुबली के मृत्यु वाले राजज्ञा का कारण बनता है.शुरुवात में ये एक डरपोक व्यक्ति होता है लेकिन बाहुबली की कृपा से साहसी योद्धा बन जाता है.इसके साथ बाहुबली का एक डायलॉग भी बहुत लोकप्रिय हुवा है “जो प्राण देता है वो भगवान् है प्राण बचाने वाला वैद्य और प्राण की रक्षा करने वाला क्षत्रिय है”.कुमारवर्मा का किरदार दर्शको का काफी मनोरंजन करता है.फिल्म के अंतिम २० मिनट जल्दबाजी में बने हुवे प्रतीत होते है जब दर्शको को लगता है की बाहुबली ३ में ही ये फिल्म पूर्ण हो पाएगी तभी ए राजामौली इस फिल्म को समेटना का प्रयास करते हुवे दिखाई देते है.महेंद्र बाहुबली की सेना और खजूर के पेड़ रबर के बने हुवे नजर आते है.बाहुबली की सेना का भल्लालदेवा के किले में उड़ते हुवे प्रवेश अतिश्योक्ति ही है.और बीजलदेवा का बच जाना भी कई लोगो को सही नहीं लगता है.इतनी भव्य फिल्म ये छोटी मोती गलतिया स्वीकार योग्य है.लेकिन भारतीय फिल्मो के इतिहास में इस फिल्म का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा जिसने भारतीय  फिल्म निर्माण उद्योग में एक नए दौर में लाया है.इससे प्रोत्साहन पा कर ही महाभारत पर आधारित १००० करोड़ के महाबजट की एक फिल्म बननी शुरू होने वाली है.सालो बाद सिनेमाघरों में हाउसफुल के बोर्ड वापस दिखाई दिए है और ये एक ऐसी फिल्म बनी जो पूरे भारत में सफल रही है.उम्मीद है आने वाले कुछ सालो में हम ऐसी कई फिल्मे देखेंगे जो दर्शको को सिनेमाघरो में खिंच लायेंगी.

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