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कब रुकेगा जाति का अत्याचार?

ragehulk
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देश को आज़ाद हुवे ७० साल हो गए लेकिन जाति है की जाती ही नहीं.पिछले हफ्ते दो दलित भाई फिर से जातिगत  भेदभाव के शिकार बन गए.

पहली घटना उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुई जहां १२ साल के एक अबोध बालक ने  आत्महत्या कर ली.उसका जुर्म सिर्फ इतना था कि खूंटा गाड़ते वक़्त गलती से एक हथोड़ा गाय को लग गया

और  गाय की मौत हो गयी.उस अबोध बालक को गौ हत्या के जुर्म में गांव से बाहर कर उसका हुक्का पानी बंद कर दिया  गया.

इस तरह के सामाजिक बहिष्कार का उस बालक के अबोध मस्तिष्क पर इतना बुरा असर हुवा कि उसने रेल से कट कर खुदखुशी कर ली.

दूसरी घटना देश के अति विकसित राज्य हरियाणा के सोनीपत की है जहां एक दलित युवक को केवल इसलिए  आत्महत्या करने पर मजबूर कर

दिया गया कि उसका तथा उसके पिता का नाम दूसरी दबंग जाति के बाप और बेटे से मिलता था,जिसकी वजह से दबंगो के कागजात इनके घर पे

डाक या कूरियर द्वारा आ जाते थे.दबंगो ने इसी बात पर इस दलित युवक को इतना प्रताड़ित किया कि वह आत्महत्या करने को मजबूर हो गया.

जिस धर्म में हर व्यक्ति को परमात्मा का अंश माना गया है उसमे एक अंश को दूसरे अंश से घृणा करते हुवे देखना आश्चर्यजनक है.रामायण के अनुसार प्रभु राम ने स्वयं सबरी के जूठे बेर खाये थे

प्रभु राम को मानने वाले धर्म के ठेकेदारों द्वारा सबरी के वंशजो से घृणा काफी दुखद है.जिस प्रकार से गुजरात के ऊना में दलितों की पिटाई गाय को ले कर की गयी और

रोहित वेमुला को आत्महत्या पर मजबूर किया गया उससे यही सन्देश जाता है की सरकार दलितों की रक्षा नहीं कर पा रही है.

इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी कि सरकार है जिसकी वजह से जातिवादी ठेकेदारों के हौसले बुलंद है और स्थानीय प्रशासन दोनों ही मामलो में आत्महत्या बता कर पल्ला झाड़ रहा है.

इन दोनों घटनाओ ने साबित कर दिया है कि  भारतीय समाज में अभी भी दलित उद्धार के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. समाज से छुआछूत कि भावना को जड़ से उखाड़ना होगा.

और राज्य तथा केंद्र सरकार को गाय से ज्यादा इंसानो की  रक्षा करनी होगी. दलितों को बाबा साहेब के आदर्शो पर चलते हुवे एकजुटता बनाये रखनी है और सभी कठिनाईयो का डट के सामना करना है.

बाबा साहेब ने अपने १० लाख अनुयायियों से यही कहा था कि भाइयो जहां तक मैं ये कारवां ले आया हु अब उससे पीछे ये कारवां नहीं ले जाना है.शिक्षित बनो, संगठित रहो और आगे बढ़ो.

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