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मायावती जी का राजनीतिक भविष्य

ragehulk
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१५ जनवरी १९५६ में डाकघर कर्मचारी श्री प्रभु दास जी के यहाँ एक बालिका ने जन्म लिया,नाम मायावती प्रभु दास,एक दलित आइकॉन.परिवार के लड़को का प्राइवेट स्कूल में एडमिशन परंतु मायावती जी को एक सरकारी स्कूल में डाला गया.१९७५ में दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ की डिग्री के लिए दाखिला.साथ में आईएएस की परीक्षा की तैयारी शुरू.१९७७ में स्व. श्री कांशीराम जी से पहली मुलाकात.और पारखी ने हीरा देखते ही पहचान लिया.स्व कांशीराम जी ने कहा था ” मैं तुम्हे इतना बड़ा नेता बना सकता हु कि १ आईएएस नहीं बल्कि आईएएस अधिकारियों की एक पूरी कतार तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करेगा”.
चौथे प्रयास में पहली बार लोकसभा के चुनी गयी.१९९५ में उत्तर प्रदेश की उस समय की सबसे युवा तथा प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री चुनी गयी.कुल चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी.मायावती जी का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष से भरा रहा.दलितों के उत्थान के लिए आजीवन अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की.२ जून १९९५ में उप्र राजनीतिक इतिहास की सबसे कलंकित घटना में मायावती जी पर उप्र सरकारी गेस्ट हाउस में जानलेवा हमला फिर भी ये लौह महिला डटी रही.
लोकसभा चुनाव २०१४ के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव २०१७ में अत्यंत निराशाजनक प्रदर्शन के बाद मायावती जी और बसपा के राजनीतिक भविष्य पर गंम्भीर सवाल उठ रहे है. बहन मायावती अपने जीवन की सबसे बड़ी समस्या का सामना कर रही है.अगले साल मायावती जी का राज्य सभा में कार्यकाल पूरा हो जायेगा और बसपा के पास अब इतने विधायक भी नहीं है की बहन जी वापस राज्यसभा में पहुच पाए.राजनीतिक रूप से बसपा की ताक़त सिर्फ कुछ विधायको तक ही सीमित रह गयी है.लोकसभा में पहले ही बसपा शून्य हो चुकी है.अब मायावती जी को बसपा और स्वयं को इस समस्या से सफलतापूर्वक निकालने के लिए कुछ नयी तरह की तथा दूरदर्शी राजनीतिक सोच की जरुरत है.अतीत में की गयी कई गलतियों को सुधारना होगा,अपनी बात लोगो के सामने ज्यादा जोरदार तरीके से रखना होगा तथा नए राजनीतिक समीकरणों को साधना होगा.
बहन जी के पिछले शासन काल में SC/ST एक्ट के भारी दुरुप्रयोग के कारण सवर्ण वर्ग बहन जी से काफी नाराज हो गया था और बहन जी का दिया नारा”सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” का नारा इस बार नहीं चला. जबकि 2007 के चुनावो में बहन जी को ब्राह्मणों और बाकी सवर्ण जातियो ने भारी समर्थन दिया था.बहन जी को इस चुनाव में सवर्ण वर्ग का समर्थन नहीं मिला .बहन जी को इसके बारे में कुछ सोचना होगा.
पिछले शासन काल में बहन जी ने कई आपराधिक प्रवृत्ति वाले तथा भ्रष्टाचार में लिप्त लोगो को पार्टी से निकाल दिया था लेकिन इस बार के चुनावो में बहन जी द्वारा खुलेआम उनके पक्ष में वोट मांगना भी जनता को राष नहीं आया.बहन जी का नारा “चढ़ गुंडों की छाती पर वोट देगा हाथी पर” जनता को काफी राष आया था लेकिन इस बार गुंडे स्वयं ही हाथी पर चढ़ गए और जनता ने इन्हें नकार दिया.
इस बार के चुनाव में बहन जी नए सामाजिक समीकरण “दलित और मुस्लिम” के भरोसे चुनाव में उतरी थी और अपनी हर सभाओ में मुस्लिम बंधुओ को अपने पार्टी को वोट करने के लिए रिझाती थी और बहन जी ने १०० मुस्लिमो को टिकट दे कर मुस्लिम वोट पाने का हरसंभव प्रयास किया था.लेकिन पिछली सरकार में हुवे ४०० से अधिक साम्प्रदायिक दंगो की वजह से जमीनी हक़ीक़त पूरी तरह से अलग थी जिसे बहन जी और उनके सलाहकार समझ नहीं पाए.बहन जी ने जितनी बार मुस्लिम वोट के लिए गुहार लगाई उतने ही उनके अपने वोट कटते गए.
पिछले शासन काल तथा उसके बाद भी बहन जी ने अपने अपने वोटरों से संवाद करने की कोई कोशिश नहीं की.समाजवादी सरकार के दौरान दलितों के खिलाफ कई बड़े अपराध हुवे लेकिन बहन जी कही भी संवेदना जताने नहीं गयी तथा बसपा ने कोई भी बड़ा आंदोलन नहीं किया.इससे बहन जी अपने वोटरों से कट सी गयी थी.
अपने पिछले शासन काल में बहन जी ने काफी सरकारी धन मूर्तियों और पार्को पर खर्च कर दिया जबकि इस धन का उपयोग गरीबो और दलितों के सामाजिक उत्थान में हो सकता था.सार्वजनिक जीवन में पैसे का दिखावा करने की आदत भी मायावती जी के लिए काफी आत्मघाती साबित हुवा.बहन जी के जन्मदिन की भव्य पार्टिया तथा नोटों की माला पहने जाने से आम जनता और दलित समुदाय अपने को ठग सा महशूस कर रहा था.इस बार के चुनाव में बहन जी ने अपनी इस गलती को समझते हुवे वडा किया था कि इस बार वो इन गलतियों को नहीं दुहरायेंगी.
इन सभी समस्याओ से पार पाना मायावती जी के लिए कठिन नहीं है.उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षमय रहा है और सभी तरह कि समस्याओ पर विजय प्राप्त कर के ही वो आज इस मुकाम तक पहुची है.उनका मजबूत जनाधार अभी भी उनके साथ है.उम्मीद है जल्द ही बाहें ही इन सभी समस्याओ का हल ढूंढ कर बसपा को फिर संघर्ष में वापस लायेंगी और वापस सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त करेंगी.

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