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तीसरे विश्व विश्वयुद्ध की आहट

ragehulk
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अमेरिका द्वारा सीरिया पर सीमित सैन्य करवाई के बाद,विमानवाहक पोत यूएसएस कार्ल विल्सन के नेतृत्व में हमलावर दस्ते की दक्षिणी चीन सागर में तैनाती के बाद वैश्विक राजनीती में इस बात की चिंता काफी बढ़ गयी है कि कहीं कोरिया पर अमेरिकी सैन्य कार्यवाई की आंच पूरा विश्व न झुलस जाये.चीन और अमेरिका के राष्ट्रपतियो की वार्ता के बाद इस बात पर सहमति बनी की नार्थ कोरिया के तानाशाह पर अंकुश लगाना विश्व शांति के लिए जरुरी है.

१५ अप्रैल को उत्तर कोरिया के संस्थापक किम द्वितीय सुंग के १०५ वे जन्मदिवस के अवसर पर उत्तर कोरिया एक बड़ी सैन्य परेड का आयोजन करेगा.इस अवसर पर वह अपने छठवा परमाणु परिक्षण या लम्बी दुरी के बैलिस्टिक मिसाइल का परिक्षण कर सकता है.इस बात की पूरी संभावना है कि उत्तर कोरिया द्वारा की गयी ऐसी किसी भी कार्यवाई का इस बार अमेरिका जवाब जरूर देगा.जापान और दक्षिण कोरिया इस हमले में अमेरिका का साथ देंगे.अब देखना है कि चीन और रूस का रुख क्या रहता है.

उत्तर कोरिया के पिछले मिसाइल परिक्षण को अमेरिका के नए राष्ट्पति डोनाल्ड ट्रम्प पहले ही अमेरिका पे हमला की तैयारी बता चुके है और दक्षिण कोरिया तथा जापान में अमेरिकी सेना की गतिविधियां बढ़ गयी है .दक्षिण कोरिया में अमेरिका अपनी मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली “THAAD ” लगा रहा है जिसका उत्तर कोरिया के साथ रूस और चीन भी विरोध कर रहे है.

यूरोप में भी पोलैंड में अमेरिका के १० मिसाइल प्रतिरोधी मिसाइलो की तैनाती के बाद रूस ने भी पोलिश और लिथुआनिया के सीमारेखा के करीब कलिनिन्ग्राद में S-400 मिसाइल प्रतिरोधी सिस्टम के साथ साथ परमाणु मिसाइल तैनात करने की घोषणा कर दी. रूस के ७४०० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से लक्ष्य भेदने वाली एंटीशिप मिसाइल के परीक्षण और भी कई अत्याधुनिक हथियारों के विकास के साथ ही विश्व में सैन्य संतुलन अस्थिर हो रहा है.

ईरान के साथ भी पिछले कुछ समय अमेरिका की राजनैतिक और सैनिक झड़पे होती रही है.अमेरिका ने ३० ईरानी कंपनियों को अपनी काली सूची में डाल दिया और जवाब में ईरान ने भी १५ अमेरिकी कंपनियों को अपनी काली सूची में डाल दिया है. फारस की खाड़ी में अमेरिकी और ईरानी नौसेना के बीच अक्सर झड़पे होती रहती है. फिलीपीन्स के राष्ट्रपति ने भी दक्षिण चीन सागर के अपने निर्जन द्वीपों पर सेना तैनात कर दी है. और ताइवान के साथ चीन के संभन्ध पहले से ही खराब है.अमेरिकी राष्ट्रपति ने ३० सालो के बाद ताइवान की राष्ट्रपति से हॉट लाइन पर बात करके एक चीन की नीति मानने से इंकार कर दिया है.

इधर भारत भी दक्षिणी चीन सागर में अपने नौसैनिक जहाजों के साथ उपस्थिति दर्ज करवा चुका है.विएतनाम के साथ मिल कर भारत सरकार वहाँ तेल का उतखनन कर रही है.जापान के साथ भी भारत का सैन्य सहयोग बढ़ रहा है.भारत सरकार को मलक्का स्ट्रेट पेट्रोल (MSP) से जुड़ने का का न्योता मिला है.यह वह समुद्री क्षेत्र है जो दक्षिणी चीन सागर को हिन्द महासागर से जोड़ता है और चीन का ८०% क्रूड और तेल जो कि चीन अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशो से आयात करता है, इसके अतिरिक्त भारत ने लगभग २ लाख करोड़ के रक्षा समझौते मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान विभिन्न देशो से किये है जिससे भारतीय सेना की मारक क्षमता के साथ साथ प्रतिरोधक क्षमता भी काफी बढ़ जायेगी.भारत सरकार पहले ही अपनी परमाणुनीति में बदलाव की घोषणा भी कर चुकी है जिसके अनुसार अब भारत पहले अपने ऊपर परमाणु हमले का इंतजार नहीं करेगा और कोई भी खतरा होने की स्थिति में भारत स्वयं ही आक्रामक देश पर पहले परमाणु हमला कर सकता है.और ये हमला सीमित ना होकर बड़े स्तर पर होगा.

विश्व राजनीति के हालात बिलकुल द्वितीय विश्व युद्ध के समय के बन चुके है.विश्व की तीन प्रमुख शक्तियों की कमान दक्षिणपंथी पार्टियों के हाथ में है और मध्य पूर्व के देशो में लगातार नरसंहार हो रहे है. विश्व के आर्थिक संसाधनों पर चीन की बुरी नीयत बढ़ती ही जा रही है जिसके कारण उसका लगभग अपने सभी पडोसी देशो के साथ सम्बन्ध खराब होते जा रहे है. इसके साथ ही चीन दक्षिणी चीन सागर में अपनी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ा रहा है और साथ ही साथ अपनी सेना का आधुनिकीकरण बहुत तेजी से कर रहा है.

विश्व के हालात ऐसे बन चुके है की कोई भी छोटी सी घटना पुरे विश्व को तीसरे महायुद्ध में खींच सकती है और इस विश्व युद्ध के परिणाम बड़े ही भयानक होंगे.महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि ” मैं नहीं जनता की तीसरा विश्व युद्ध किन हथियारों से लड़ा जाएगा लेकिन तीसरे विश्व युद्ध के बाद चौथा विश्व युद्ध पत्थरो से लड़ा जाएगा”.

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