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राम मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से आये निवेदन और योगी सरकार द्धारा रामायण म्यूजियम के लिए अयोध्या में जमीन आवंटित करने के साथ ही ये मसला फिर सुर्खियों में है. योगी जी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही ये कयास लगने शुरू हो गए थे की बीजेपी अब अपने मुख्य मुद्दों की तरफ ध्यान देना शुरू करना चाहती है. मोदी जी और योगी जी दोनों का ही “राम मंदिर” के मुद्दे से गहरा सम्बन्ध रहा है. जहाँ मोदी जी से जुड़े गुजरात दंगो का अप्रत्यक्ष सम्बन्ध भी “राम मंदिर” से ही रहा है वही योगी जी के नाथ सम्प्रदाय से जुड़े गुरुओ का भी इस आंदोलन से गहरा सम्बन्ध रहा है.योगी जी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में प्रचार के दौरान ये मुद्दा कई जगहों पर उठाया तथा “राम मंदिर” के निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी जाहिर की थी. योगी जी के गुरु स्व “श्री अवैद्यनाथ जी” के गुरु स्व.”श्री दिग्विजय नाथ जी ” १९४९ में राम जन्भूमि आंदोलन से जुड़े तथा उनके नेतृत्व में ९ दिन तक चले रामचरित्र मानष के पाठ के बाद “बाबरी मस्जिद” के अंदर भगवान् श्री राम और माता सीता की मूर्तियों की स्थापन कर दी गयी जिसके कारण तत्कालीन सरकार को “बाबरी मस्जिद” में ताला लगाना पड़ा. और मुसलमानो ने वहाँ नमाज पढ़ना छोड़ दिया.
७ सितम्बर १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् ने “बाबरी मस्जिद” के ढांचे से ताला खोलने तथा उसके स्थान पर एक भव्य “राम मंदिर” के निर्माण के लिए आंदोलन की शुरुवात की. बीजेपी ने १९८९ में विहिप के आंदोलन का समर्थन किया तथा इसी वर्ष केंद्र की तत्कालीन स्व. श्री राजीव गाँधी जी की सरकार ने ताला खोलने तथा शिलान्यास करने की अनुमति दी. इसके अगले ही वर्ष १९९० में बीजेपी के अध्यक्ष श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शरू की जिसके कारण १९९१ के चुनावो में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की ४२५ विधान सभा सीट में से २२५१ सीट जीत कर सरकार बनाई. १९९१ में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी की सरकार ने ६६.७७ एकड़ भूमि राम मंदिर के लिए अधिग्रहित की तथा ६ दिसम्बर १९९२ में “बाबरी मस्जिद’ के गिराए जाने के साथ ही उसी शाम कल्याण सिंह जी ने इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हूवे इस्तीफा दे दिया था.
२००३ में इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश बहरतीय पुरातत्व विभाग ने अयोध्या में खुदाई की तथा ये स्वीकार किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण मिले है और इसी आधार पर ३० सितम्बर २०१० को लखनऊ पीठ ने मन्दिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया. जिसके सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट चले गए जिसके बाद २१ मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षो के राजी होने पर कोर्ट से बाहर मध्यस्थता करने का सुझाव दिया. और दोनों पक्षो को आपसी बातचीत से हल निकालने को कहा.
इधर केंद्र में मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के गठन के साथ ही बीजेपी और संघ के मूल कार्यकर्ताओ के बीच से ये मांग उठनी शुरू हो चुकी है कि अब राम मंदिर का निर्माण हो जाना चाहिए और भाजपा को अपने पुराने वादे “राम लला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे” को पूरा करना चाहिए.भाजपा के लिए मुद्दा राजनीतिक न हो कर भावुक मुद्दा भी है क्योंकि राम मंदिर आंदोलन में कई भाजपा कार्यकर्ताओ की जान जा गयी थी और १९९२ में इस मुद्दे के लिए भाजपा को अपनी एक पूर्ण बहुमत की सरकार को भी त्यागना पड़ा था.
इस बात कि पूरी संभावना है कि २०१७-१८ के बीच कभी भी “राम मंदिर” का निर्माण कार्य आरम्भ हो सकता है. मई २०१८ में मोदी सरकार के राज्यसभा में बहुमत के साथ ही “राम मंदिर” आंदोलन के निर्माण में आने वाली अंतिम बाधा भी समाप्त हो जाएगी तथा सरकार “राम मंदिर” बनाने के लिए संसद से कानून भी पास करा सकती है.
केंद्र में मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के गठन के साथ ही राम मंदिर निर्माण की कवायद तेज़ हो गयी है.भाजपा के लिए यह मुद्दा राजनीतिक न हो कर भावुक मुद्दा भी है.अब देखना है की यह कब पूर्ण तक होता है :-
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